Thursday, 3 December 2020

Class - 10 Hindi Course - A "जॉर्ज पंचम की नाक" (कमलेश्वर)

जॉर्ज पंचम की नाक कमलेश्वर रचित एक व्यंग्य है जो कि आज़ाद राष्ट्र के परतंत्र मानस के प्रतिनिधियों पर एक करारी चोट है.। जॉर्ज पंचम की मूर्ति की टूटी हुई नाक के बहाने अपनी स्वतंत्रता के लिए जान देने वाले अनेकों महापुरुषों और छोटे बच्चों को जिस तरह याद किया है उससे कई दिशाओं में यात्रा के प्रस्थान का बिंदु पाठक पाता है । इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ अपने पति के साथ हिंदुस्तान के दौरे पर आ रही हैं जिससे कि समस्त सरकारी अधिकारी वर्ग व्यस्त हैं । जहाँ एक ओर हिंदुस्तान में सभी दिल्ली की छवि बदलने की तैयारी में लगे हैं, इंग्लैंड में रानी के दरजी उनके लिए एक पोशाक तैयार करने में लग जाते हैं । दिल्ली में सेक्रेटरिएट पर पता चलता है कि लाट से नाक गायब है तो सब अधिकरियों में चर्चा होती है और यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि रानी के आने से पहले लाट पर नाक फिर से लगवानी चाहिए.। मूर्तिकार उनसे वह पत्थर लाने के लिए बोलता है जिससे कि मूर्ति बनी थी । पुरे भारत में जब पत्थर नहीं मिलता तो तय किया जाता है कि किसी वर्तमान मूर्ति की नाक जॉर्ज पंचम की नाक की जगह लगा दी जाए । पुरे देश की मूर्तियों की नाक नापी जाती हैं परन्तु वे सभी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । फिर बच्चों की नाकें नापी जाती हैं और वे भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । अंत में यह फैसला होता है कि कोई असली नाक ही लाट पर लगा दी जाए । चालीस करोड़ में से किसी एक की नाक तो लग ही जायेगी । आखिर जॉर्ज पंचम की लाट को बिना नाक के कैसे छोड़ा जा सकता था । अख़बारों में खबर आयी कि जॉर्ज पंचम कि नाक का मामला हल हो गया है । लाट पर नाक लग गयी है, परन्तु उस दिन के अखबार में कहीं किसी उद्घाटन की, किसी भेंट की, हवाई अड्डे पर किसी स्वागत सभा की, कोई खबर नहीं थी , अखबार खाली थे । नाक तो सिर्फ एक थी वह भी बूत के लिए, फिर पता नहीं क्या हुआ.।

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