Friday, 27 November 2020
Class - 10 Hindi Course - A "कन्यादान"(ऋतुराज)
कवि ऋतुराज ने कन्यादान कविता के माध्यम से शादी के बाद स्त्री जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों के बारे में एक संदेश देने की कोशिश की हैं।कविता में विवाह के पश्चात बेटी की विदाई के वक्त एक मां अपने जीवन के सभी अच्छे व बुरे अनुभवों को निचोड़ कर एक सही व तर्कसंगत सीख देने की कोशिश करती है। ताकि उसकी बेटी ससुराल में सुख व सम्मान पूर्वक जी सके।हिंसा , अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठा
सके। कविता में माँ परंपरागत माओं से बिल्कुल भिन्न हैं। जो अपनी बेटी को “परंपरागत आदर्शों” से हट कर सीख दे रही हैं।
कन्यादान करते समय माँ को ऐसा लग रहा है जैसे वह अपने जीवन की सारी जमा पूँजी दान कर रही हो । लेकिन अंदर ही अंदर वह अपनी बेटी के लिए चिंतित भी थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी बेटी अभी इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह अपने नये जीवन व ससुराल में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को समझ कर उनका सामना कर सके।मां को लगता है कि उसकी बेटी भोली और नादान है। उसने अपने जीवन में अभी तक सिर्फ सुख ही सुख देखा है। उसे दुख व परेशानी को बांटना या उनसे निकलना नहीं आता है।
ससुराल में बेटी को किसी तरह की कोई परेशानी ना हो। इसीलिए माँ अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से सीखी हुई अपनी प्रमाणिक सीख को अपनी बेटी को देने की कोशिश करती है।
मां अपनी बेटी को चार बड़ी-बड़ी सीख देती हैं। पहली सीख में मां बेटी से कहती है कि कभी भी अपने रूप सौंदर्य पर अभिमान मत करना क्योंकि यह स्थाई नहीं होता है।दूसरा सीख में माँ कहती है कि आग का प्रयोग हमेशा खाना बनाने के लिए करना। लेकिन अगर किसी के द्वारा इसका प्रयोग जलाने के लिए किया जाए तो , उसका पुरजोर विरोध करना। क्योंकि आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती हैं जलने या जलाने के लिए नहीं।
यहां पर कवि उन लोगों पर अपने शब्दों से तीक्ष्ण प्रहार कर रहे हैं जो लोग दहेज के लालच में आकर अपनी बहूओं को आग के हवाले करने में तनिक भी नहीं हिचकते हैं। तीसरी सीख में माँ कहती है कि महिलाओं का वस्त्र और आभूषण के प्रति विशेष मोह होता है। लेकिन तुम इन सबका मोह कभी मत करना क्योंकि ये ही जीवन के सबसे बड़े बंधन बन जाते हैं या महिलाओं के पैरों की जंजीर बन जाते हैं।
और अंतिम सीख देते हुए वह कहती हैं कि “लड़की होना पर , लड़की जैसे मत दिखाई देना” अर्थात मर्यादा , लज्जा , शिष्टता , विनम्रता , ये सब स्त्री सुलभ गुण हैं। इनको तुम बरकरार रखना लेकिन इन्हें कभी अपनी कमजोरी मत बनने देना। अन्याय और अत्याचार का हमेशा डटकर सामना करना , उसके खिलाफ अपनी आवाज जरूर उठाना।
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