Thursday, 3 December 2020
Class - 10 Hindi Course - A "साना साना हाथ जोड़ि" (मधु कांकरिया)
मधु कांकरिया जी ने इस पाठ मेंअपनी सिक्किम की यात्रा का वर्णन किया है। एक बार वे अपनी मित्र के साथ सिक्किम की राजधानी गंगटोक घूमने गयी थीं। रात में ढलान पर सितारिन की जगमगाती झालर ने उसे इतना सम्मोहित किया वह उसी दिन वहां से सीखी प्रार्थना -:"मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो I"
अगले दिन मौसम साफ़ न होने के कारण लेखिका कन्चंजुन्घा की छोटी तो नहीं देख पायीं ,परन्तु ढेरों खिले फूलों को देखकर मन आनंदित हो गया Iउस दिन गैंगटोक से 149किलोमीटर दूर वे यूमधांग, लायुंग और कटाओ गयीं।
वहां के लोग बौध धर्म को बहुत मानते थे Iरास्ते में उन्होंने बौध अनुयायियों की लगई सफ़ेद और रंगीन झंडिया देखीं I'कवी -लॉग स्टॉक 'नमक स्थान पर हिंदी फिल्म गाइड की शूटिंग स्थान देखा Iवहीँ लेपचा और भुटिया जातियों का शांति वार्ता स्त्य्हन भी देखा Iएक कुतिया में पापों को धोने का प्रेयर व्हील देखा I
उंचाई पर चढ़ते चढ़ते धीरे धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों को दिखना बंद हो गया Iनीचे घर छोटे छोटे ताश के पत्तों जैसे दिखने लगे Iरास्ते संकरे और घुमावदार होने लगे Iहरियाली के बिच कहीं कहीं खिले फूल भी थे Iहिमालय की सुन्दरता लोगों को काफी प्रभावित किया Iप्रसन्न लेखिका ने हिमालय को सलामी देनी चाही थी I सत्य और सुन्दरता की अनुभूति से वह भावुक हो उठी I अज्ञान दूर हुआ Iआत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना "मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो I उन्होंनेइस पाठ में सिक्किम की संस्कृति और वहां के लोगों के जीवन का विस्तार से वर्णन किया है। पाठ में हिमालय और उसकी घाटियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है। लेखिकावहां की बदलती प्रकृति के साथ अपने को भी बदलता हुआ महसूस करती हैं। वे कभीप्रकृति प्रेमी, कभी एक विद्वान्, संत या दार्शनिक के समान हो जाती हैं। लेखिका परइस यात्रा का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने इस पाठ का नाम, एक नेपाली युवती की बोलीहुई प्रार्थना से लिया।
साना साना हाथ जोड़ी का अर्थ है - छोटे छोटे हाथ जोड़कर
प्रार्थना करती हूँ।
Class - 10 Hindi Course - A "जॉर्ज पंचम की नाक" (कमलेश्वर)
जॉर्ज पंचम की नाक कमलेश्वर रचित एक व्यंग्य है जो कि आज़ाद राष्ट्र के परतंत्र मानस के प्रतिनिधियों पर एक करारी चोट है.। जॉर्ज पंचम की मूर्ति की टूटी हुई नाक के बहाने अपनी स्वतंत्रता के लिए जान देने वाले अनेकों महापुरुषों और छोटे बच्चों को जिस तरह याद किया है उससे कई दिशाओं में यात्रा के प्रस्थान का बिंदु पाठक पाता है । इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ अपने पति के साथ हिंदुस्तान के दौरे पर आ रही हैं जिससे कि समस्त सरकारी अधिकारी वर्ग व्यस्त हैं । जहाँ एक ओर हिंदुस्तान में सभी दिल्ली की छवि बदलने की तैयारी में लगे हैं, इंग्लैंड में रानी के दरजी उनके लिए एक पोशाक तैयार करने में लग जाते हैं । दिल्ली में सेक्रेटरिएट पर पता चलता है कि लाट से नाक गायब है तो सब अधिकरियों में चर्चा होती है और यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि रानी के आने से पहले लाट पर नाक फिर से लगवानी चाहिए.। मूर्तिकार उनसे वह पत्थर लाने के लिए बोलता है जिससे कि मूर्ति बनी थी । पुरे भारत में जब पत्थर नहीं मिलता तो तय किया जाता है कि किसी वर्तमान मूर्ति की नाक जॉर्ज पंचम की नाक की जगह लगा दी जाए । पुरे देश की मूर्तियों की नाक नापी जाती हैं परन्तु वे सभी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । फिर बच्चों की नाकें नापी जाती हैं और वे भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । अंत में यह फैसला होता है कि कोई असली नाक ही लाट पर लगा दी जाए । चालीस करोड़ में से किसी एक की नाक तो लग ही जायेगी । आखिर जॉर्ज पंचम की लाट को बिना नाक के कैसे छोड़ा जा सकता था । अख़बारों में खबर आयी कि जॉर्ज पंचम कि नाक का मामला हल हो गया है । लाट पर नाक लग गयी है, परन्तु उस दिन के अखबार में कहीं किसी उद्घाटन की, किसी भेंट की, हवाई अड्डे पर किसी स्वागत सभा की, कोई खबर नहीं थी , अखबार खाली थे । नाक तो सिर्फ एक थी वह भी बूत के लिए, फिर पता नहीं क्या हुआ.।
Class - 10 Hindi Course - A "माता का आंचल" (शिवपूजन सहाय)
बच्चे का माँ से ममता का रिश्ता होता है। पिता के साथ स्नेहाधारित रिश्ता होता है। दोनों प्रेम के रूप हैं पर ममता में कठोरता का कोई स्थान नहीं होता। पिता के स्नेह में किंचित कठोरता शामिल हो सकती है। इसलिए बच्चा अपने पिता का स्नेह प्राप्त करके आनंदित हो सकता है पर उसमें माँ के प्रेम के बराबर सुख नहीं मिलता है।
भोलानाथ को अपने पिता से लगाव था पर विपदा के समय वह अपनी माँ के पास जाता है। क्योंकि पिता से डांट खाने की संभावना थी पर माँ की गोद में हर स्थिति में प्रेम, ममता और दुलार मिलना निश्चित था।
वह एक बच्चा था और उसे खेल कूद अच्छा लगता था। उनके साथ वह खेल में मगन हो जाता था। एक बार जब वह गुरूजी से डांट खाने के बाद अपने पिता के साथ रोता हुआ जा रहा था, उसने अपने मित्रों को एक चिड़िया के झुण्ड के साथ खेलते हुए देखा। वह अपना दुःख भूल गया और उनके साथ खेलने लगा।
भोलानाथ और उसके साथी आस पास उपलब्ध चीजों से खेलते थे। वे मिट्टी के टूटे फूटे बर्तन, धूल, कंकड़ पत्थर, गीली मिट्टी और पत्तियों से खेलते थे। वे समधी को बकरे पर सवार करके बारात निकालने का खेल खेलते थे। कभी कभी लोगों को चिढ़ाते थे।
एक दिन जब पिताजी रामायण पढ़ रहे थे भोलानाथ अपने को आईने में देखकर खुश हो रहा था। लेकिन जब पिताजी ने उसकी ओर देखा तो उसने शर्मा कर आईना रख दिया।
पाठ के अंत में दिखाया गया है कि भोलानाथ सांप से डरकर माता की गोद में आता है, माँ अपने बेटे की हालत देखकर दुखी होती है और उसे अपने आंचल में छिपा लेती है। इस प्रकार जबकि उसका अधिक समय पिता के साथ व्यतीत होता है विपदा के समय उसे माँ की गोद में ही शांति मिलती है।
Friday, 27 November 2020
Class - 10 Hindi Course - A "कन्यादान"(ऋतुराज)
कवि ऋतुराज ने कन्यादान कविता के माध्यम से शादी के बाद स्त्री जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों के बारे में एक संदेश देने की कोशिश की हैं।कविता में विवाह के पश्चात बेटी की विदाई के वक्त एक मां अपने जीवन के सभी अच्छे व बुरे अनुभवों को निचोड़ कर एक सही व तर्कसंगत सीख देने की कोशिश करती है। ताकि उसकी बेटी ससुराल में सुख व सम्मान पूर्वक जी सके।हिंसा , अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठा
सके। कविता में माँ परंपरागत माओं से बिल्कुल भिन्न हैं। जो अपनी बेटी को “परंपरागत आदर्शों” से हट कर सीख दे रही हैं।
कन्यादान करते समय माँ को ऐसा लग रहा है जैसे वह अपने जीवन की सारी जमा पूँजी दान कर रही हो । लेकिन अंदर ही अंदर वह अपनी बेटी के लिए चिंतित भी थी क्योंकि वह जानती थी कि उसकी बेटी अभी इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह अपने नये जीवन व ससुराल में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को समझ कर उनका सामना कर सके।मां को लगता है कि उसकी बेटी भोली और नादान है। उसने अपने जीवन में अभी तक सिर्फ सुख ही सुख देखा है। उसे दुख व परेशानी को बांटना या उनसे निकलना नहीं आता है।
ससुराल में बेटी को किसी तरह की कोई परेशानी ना हो। इसीलिए माँ अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से सीखी हुई अपनी प्रमाणिक सीख को अपनी बेटी को देने की कोशिश करती है।
मां अपनी बेटी को चार बड़ी-बड़ी सीख देती हैं। पहली सीख में मां बेटी से कहती है कि कभी भी अपने रूप सौंदर्य पर अभिमान मत करना क्योंकि यह स्थाई नहीं होता है।दूसरा सीख में माँ कहती है कि आग का प्रयोग हमेशा खाना बनाने के लिए करना। लेकिन अगर किसी के द्वारा इसका प्रयोग जलाने के लिए किया जाए तो , उसका पुरजोर विरोध करना। क्योंकि आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती हैं जलने या जलाने के लिए नहीं।
यहां पर कवि उन लोगों पर अपने शब्दों से तीक्ष्ण प्रहार कर रहे हैं जो लोग दहेज के लालच में आकर अपनी बहूओं को आग के हवाले करने में तनिक भी नहीं हिचकते हैं। तीसरी सीख में माँ कहती है कि महिलाओं का वस्त्र और आभूषण के प्रति विशेष मोह होता है। लेकिन तुम इन सबका मोह कभी मत करना क्योंकि ये ही जीवन के सबसे बड़े बंधन बन जाते हैं या महिलाओं के पैरों की जंजीर बन जाते हैं।
और अंतिम सीख देते हुए वह कहती हैं कि “लड़की होना पर , लड़की जैसे मत दिखाई देना” अर्थात मर्यादा , लज्जा , शिष्टता , विनम्रता , ये सब स्त्री सुलभ गुण हैं। इनको तुम बरकरार रखना लेकिन इन्हें कभी अपनी कमजोरी मत बनने देना। अन्याय और अत्याचार का हमेशा डटकर सामना करना , उसके खिलाफ अपनी आवाज जरूर उठाना।
Class - 10 Hindi Course - A “उत्साह” और “अट नहीं रही हैं ” (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला)
उत्साह मुख्य रूप से एक “आह्वान गीत” हैं जो बादलों को संबोधित है। बादल निरालाजी का प्रिय विषय हैं। कवि कविता के माध्यम से दो बातों को एक साथ कहने का प्रयास करते हैं।
एक तरफ तो कवि कहते हैं कि बादल पीड़ित व प्यासे जन मानस की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है , तो दूसरी तरफ वही बादल नई कल्पना और नए अंकुर को जन्म देने के साथ साथ लोगों के अंदर क्रांतिकरी चेतना को भी जागृत करने वाला है।कवि जीवन को बहुत व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते है। कविता में ललित कल्पना और क्रांति चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांति या बदलाव में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। निराला इसे “नवजीवन” और “नूतन कविता” के संदर्भ में देखते हैं।
अट नहीं रही है कविता में कवि ने फाल्गुन माह की खूबसूरती का वर्णन किया हैं। फाल्गुन माह में आने वाली बसंत ऋतु को “ऋतुराज” यूं ही नहीं कहा जाता हैं। यह वाकई में “ऋतुओं का राजा” होता है। इस समय प्रकृति की जो मनमोहक सुंदरता दिखाई देती है। वह शायद ही किसी और ऋतु के आगमन के वक्त दिखता हो।हाड़ कपाती ठंड के बाद जब धीरे-धीरे धरती का तापमान बढ़ने लगता है। इसी के साथ ही ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। बसंत के आगमन से बाग बगीचों में सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं। उनकी भीनी भीनी खुशबू घर आंगन , पूरे वातावरण में हर जगह फैलने लगती हैं।
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहा है कि “ऐसा लगता हैं मानो फाल्गुन के सांस लेने से पूरा वातावरण खुशबू से भर गया हो।और सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे खिले फूल कवि को ऐसे लगते हैं जैसे प्रकृति ने अपने गले में कोई सुंदर सी माला पहनी हो”।
इसी के साथ पेड़-पौधों में नए पत्ते लगने लगते हैं। आम , लीची में बौंर आनी शुरू हो जाती है। चारों तरफ हरियाली छाने लगती है। रंग बिरंगी तितलियां व भौरों के मधुर गीत हर तरफ सुनाई देते हैं। इस समय प्रकृति की अद्भुत छटा देखने लायक होती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने किसी दुल्हन की तरह अपना श्रृंगार किया हो। जिस पर से आँख हटानी कवि को मुश्किल लग रही हैं।
कवि ने फाल्गुन माह में प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन इस कविता के माध्यम से बड़ी ही खूबसूरती से किया है।
Class - 10 Hindi Course - A राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
परशुराम लक्ष्मण संवाद के दोहे और चौपाइयाँ रामचरितमानस के बालकाण्ड से ली गई हैं। बालकाण्ड में भगवान राम के जन्म से लेकर राम-सीता विवाह तक के प्रसंग आते हैं।
यह प्रसंग उस समय का हैं जब राजा जनक ने अपनी पुत्री माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था। जिसमें देश विदेश के सभी राजाओं को आमंत्रित किया गया। स्वयंवर की शर्त के अनुसार जो भगवान शिव का धनुष तोड़ेगा , माता सीता उसी को अपने पति के रूप में वरण करेंगी।
भगवान राम ने शिव का धनुष तोड़ दिया।और माता सीता ने भगवान राम को अपना पति स्वीकार कर उन्हें वरमाला पहनाई। लेकिन जब भगवान राम ने भगवान शिव का धनुष तोडा तो , उसके टूटने की आवाज तीनों लोकों में सुनाई दी।
परशुराम जो भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। जब उन्होंने धनुष टूटने की आवाज सूनी तो वो बहुत क्रोधित हुए। और तुरंत राजा जनक के दरबार में पहुँच गए। यह प्रसंग क्रोधित परशुराम और भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण के बीच हुए संवाद का है।
Class - 10 Hindi Course - A सूरदास के पद
यहां सूरदास के “सूरसागर के भ्रमरगीत” से चार पद लिए गए हैं। कृष्ण ने मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों को सन्देश भेजा था। उद्धव ने निर्गुण ब्रह्म और योग का उपदेश देकर गोपियों की विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया था। गोपियाँ ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसी कारण उन्हें उद्धव का यह संदेश पसंद नहीं आया। और वो उद्धव पर व्यंग बाण छोड़ने लगी।
Class - 10 Hindi Course - A मानवीय करुणा की दिव्य चमक (सर्वेश्वर दयाल सक्सेना )
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने फ़ादर बुल्के के जीवन का चित्रांकन किया है। फ़ादर बुल्के का जन्म बेल्जियम के रेम्सचैपल में हुआ था। वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ने के बाद पादरी बनने की विधिवत शिक्षा ली। भारतीय संस्कृति के प्रभाव में आकर भारत आ गए। बुल्के के पिता व्यवसायी थे, एक भाई पादरी था तथा एक परिवार के साथ रहकर काम करने वाला था। एक बहन भी थी जिसने बहुत दिन बाद शादी की। माँ की उन्हें बहुत याद आती थी, उनकी चिट्ठियां अक्सर उनके पास आती रहती थीं। उन पत्रों को वो अपने मित्र रघुवंश को हमेशा दिखाते रहते थे।
भारत में उन्होंने जिसेट संघ में दो साल तक पादरियों के बीच रहकर धर्माचार की शिक्षा प्राप्त की। 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में रहकर अध्यन कार्य किया। कोलकाता में रहते हुए बी.ए. तथा इलाहाबाद से एम.ए. की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। हिंदी से उनका अत्याधिक लगाव रहा। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से सन 1950 शोध प्रबंध 'रामकथाःउत्पत्ति और विकास' लिखा। रांची में सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में उन्होंने काम किया। बुल्के ने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक 'ब्लू बर्ड'का रूपांतर 'नीला पंक्षी' के नाम से किया। बाइबिल का हिंदी अनुवाद किया तथा एक हिंदी-अंग्रेजी कोश भी तैयार किया। वे भारत में रहते हुए दो-चार बार ही बेल्जियम गए।
लेखक का परिचय बुल्के से इलाहबाद में हुआ जो की दिल्ली आने पर भी बना रहा। लेखक उनके महान व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे जिससे उनके पारिवारिक समबन्ध बन गए। वे एक बार रिश्ता बनाते तो तोड़ते नही, उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। वे हिंदी भाषियों को ही हिंदी की उपेक्षा करने पर झुंझलाते और दुखी हो जाते। लेखक के पत्नी और बेटे की मृत्यु पर बुल्के द्वारा सांत्वना देती हुई पंक्ति ने लेखक को अनोखी शान्ति प्रदान की।
फादर बुल्के की मृत्यु दिल्ली में जहरबाद से पीड़ित होकर हुई। अंतिम समय में उनकी दोनों हाथ की अंगुलियाँ सूज गई थीं। दिल्ली में रहकर भी लेखक को उनकी बीमारी और उपस्थिति का ज्ञान ना होने से अफ़सोस हुआ। 18 अगस्त, 1982 की सुबह दस बजे कश्मीरी गेट निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक नीली गाडी से रघुवंश जी के बेटे, परिजन राजेश्वर सिंह और कुछ पादरियों ने उतारा और अंतिम छोर पर पेड़ों की घनी छाया से ढके कब्र तक ले जाया गया। वहाँ उपस्थित लोगों में जैनेंद्र कुमार, विजयेंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ निर्मला जैन, इलाहबाद के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ सत्यप्रकाश, डॉ रघुवंश, मसीही समुदाय के लोग और पादरी गण थे।फादर बुल्के के मृत शरीर को कब्र पर लिटाने के बाद रांची के फ़ादर पास्कल तोयना ने मसीही विधि से अंतिम संस्कार किया और सबने श्रद्धांजली अर्पित की। लेखक के अनुसार फ़ादर ने सभी को जीवन भर अमृत पिलाया, फिर भी ईश्वर ने उन्हें जहरबाद द्वारा मृत्यु देकर अन्याय किया। लेखक फ़ादर को ऐसे सघन वृक्ष की उपमा देता है जो अपनी घनी छाया, फल,फूल और गंध से सबका होने के बाद भी अलग और सर्वश्रेष्ठ था।
Class - 10 Hindi Course - A लखनवी अंदाज़ (यशपाल)
लखनवी अंदाज़ पाठ यशपाल द्वारा लिखा गया है| इस पाठ में लेखन ने दिखावा पसंद लोगों
की जीवन शैली का वर्णन किया है| लेखक इस पाठ के माध्यम से बताना चाहता है की बिना
पात्रों , घटना और विचार के भी स्वतंत्र रूप से रचना लिखी जा सकती है| कहानी में
नबाब साहब और उनके द्वारा खीरे काट कर खिड़की से फेंकने को आधार बनाकर अपने विचार
व्यक्त किया है| नबाब साहब खीरे को सूंघ कर संतुष्ट होने का दिखावा करते है | यह
उनके ढोंग पन अवास्तविक है| नबाब के इस व्यवहार से लगता है की लोग आम लोगों जैसे
कार्य एकांत में करना पसंद करते है उन्हें ऐसा लगता है कि कहीं उनके कोई देख ना ले
और उनकी शान में कोई फर्क न आ जाए | आज समाज में भी ऐसी दिखावा पसंद संस्कृति का
आदि हो गया है| इस प्रकार केवल प्रदर्शन कर आडम्बर नई कहानी के लेखक बिना विचार ,
उद्देश्य , पात्र और घटना मात्र अपनी इच्छा द्वारा लिख रहे है|
Thursday, 26 November 2020
Class - 10 Hindi Course - A बालगोबिन भगत (रामवृक्ष बेनीपुरी)
बालगोबिन भगत पाठ का सार- बालगोबिन भगत रेखाचित्र के माध्यम से रामवृक्ष बेनीपुरी
ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता ,लोक संस्कृति और सामूहिक
चेतना का प्रतिक है। वेश भूषा या ब्रह्य आडम्बरों से कोई सन्यासी है ,सन्यास का
आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं . बालगोबिन भगत इसी आधार पर लेखक को सन्यासी
लगते हैं . इस पाठ के माध्यम से सामाजिक रुढियों पर भी प्रहार किया गया है साथ ही
हमें ग्रामीण जीवन की झाँकी भी दिखाई गयी है . बालगोबिन भगत ,कबीरपंथी एक गृहस्थ
संत थे . उनकी उम्र साथ से ऊपर रही होगी . बाल पके थे . कपडे के नाम पर सिर्फ एक
लंगोटी ,सर्दी के मौसम में एक काई कमली . रामनामी चन्दन और गले में तुलसी की माला
पहनते थे . उनके घर में एक बेटा और बहु थे . वे खेतिहर गृहस्थ थे . झूठ ,छल प्रपंच
से दूर रहते . दो टूक बाते करते . कबीर को अपना आदर्श मानते थे ,उन्ही के गीतों को
गाते . अनाज पैदा पर कबीर पंथी मठ में ले जाकर दे आते और वहाँ से जो मिलता ,उसी से
अपना गुजर बसर करते . उनका गायन सुनने के लिए गाँव वाले इकट्ठे हो जाते . धान के
रोपनी के समय में उनके गीत सुनकर बच्चे झूमने लगते ,मेंड पर खड़ी औरतें के होंठ काँप
उठते थे .रोपनी करने वाले की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थी . कार्तिक
,भादों ,सर्दी - गर्मी हर मौसम में बाल गोबिन सभी को अपने गायन से सीतल करते।
बालगोबिन भक्त आदमी थे। उनकी भक्ति साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखने को मिला ,जिस
दिन उनका एक मात्र पुत्र मरा , वे रुदन के बदले उत्सव मनाने को कहते थे। उनका मानना
था कि आत्मा - परमात्मा को मिल गयी है। विरहणी अपनी प्रेमी से जा मिली। वे आगे एक
समाज सुधारक के रूप में सामने आते हैं। अपनी पतोहू द्वारा अपने बेटे को मुखाग्नि
दिलाते हैं। श्राद्ध कर्म के बाद ,बहु के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी करने को
कहते हैं। बहु के बहुत मिन्नतें करने पर भी वे अटल रहते हैं। इस प्रकार वे विधवा
विवाह के समर्थक हैं। बालगोबिन की मौत उन्ही के व्यावकत्व के अनुरूप शांत रूप से
हुई। अपना नित्य क्रिया करने वे गंगा स्नान करने जाते ,बुखार लम्बे उपवास करके मस्त
रहते। लेकिन नेम ब्रत न छोड़ते। दो जून गीत ,स्नान ध्यान ,खेती बारी। अंत समय बीमार
पड़कर वे परंपरा को प्राप्त हुए। भोर में उनका गीत न सुनाई पड़ा। लोगों ने जाकर देखा
तो बालगोबिन्द स्वर्ग सिधार गए हैं।
Class - 10 Hindi Course - A नेताजी का चश्मा (स्वयं प्रकाश)
एक कंपनी में कार्यरत एक साहब अक्सर अपनी कंपनी के काम से बाहर जाते थे | हालदार
साहब एक कस्बे से होकर गुजरते थे | वह क़स्बा बहुत ही छोटा था| कहने भर के लिए बाज़ार
और पक्के मकान थे| लड़कों और लड़कियों का अलग अलग स्कूल था | मुख्य बाज़ार के मुख्य
चौराहे पर नेताजी की मूर्ति थी | मूर्ति कामचलाऊ थी पर कोशिश सराहनीय थी | संगमरमर
की मूर्ति थी पर उसपर चश्मा असली था | चौकोर और चौड़ा सा काला रंग का चश्मा | फिर एक
बार गुजरते हुए देखा तो पतले तार का गोल चश्मा था | जब भी हालदार साहब उस कस्बे से
गुजरते तो मुख्य चौराहे पर रूककर पान जरुर खाते और नेताजी की मूर्ति पर बदलते चश्मे
को देखते | एक बार पानवाले से पूछा की ऐसा क्यों होता है तो पानवाले ने बताया की
ऐसा कैप्टेन चश्मे वाला करता है | जब भी कोई ग्राहक आटा और उसे वही चश्मा चाहिए तो
वो मूर्ति से निकलकर बेच देता और उसकी जगह दूसरा फ्रेम लगा देता | पानवाले ने बताया
की जुगाड़ पर कस्बे के मास्टर साहब से बनवाया वह मूर्ति, मास्टर साहब चश्मा बनाना
भूल गए थे | और पूछने पर पता चला की चश्मे वाले का कोई दूकान नहीं था बल्कि वो बस
एक मरियल सा बूढा था जो बांस पर चश्मे की फेरी लगाता था | जिस मजाक से पानवाले ने
उसके बारे में बताया हालदार साहब को अच्छा न लगा और उन्होंने फैसला किया दो साल तक
साहब वहां से गुजरते रहे और नेताजी के बदलते चश्मे को देखते रहे | कभी काला कभी
लाल, कभी गोल कभी चौकोर, कभी धूप वाला कभी कांच वाला | एक बार हालदार साहब ने देखा
की नेताजी की मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं है | पान वाले ने उदास होकर नम आँखों से
बताया की कैप्टन मर गया | वो पहले ही समझ चुके थे की वह चश्मे वाला एक फ़ौजी था और
नेताजी को उनके चश्मे के बगैर देख कर आहत हो जाता होगा | अपने जी चश्मों में से एक
चश्मा उन्हें पहना देता और जब भी कोई ग्राहक उसकी मांग करते तो उन्हें वह नेताजी से
माफ़ी मांग कर ले जाता और उसकी जगह दूसरा सबसे बढ़िया चश्मा उन्हें पहना जाता होगा |
और उन्हें याद आया की पानवाले से हस्ते हुए उसे लंगड़ा पागल बताया था | उसके मरने की
बात उनके दिल पर चोट कर गयी और उन्होंने फिर कभी वहां से गुजरते वक़्त न रुकने का
फैसला किया | पर हर बार नज़र नेताजी की मूर्ति पर जरुर पड़ जाती थी | एक बार वो यह
देख कर दंग रह गये की नेताजी की मूर्ति पर चश्मा चढ़ा है | जाकर ध्यान से देखा तो
बच्चो द्वारा बनाया एक चश्मा उनकी आँखों पर चढ़ा था | इस कहानी से यह बताने की कोशिश
की गयी है की हम देश के लिए कुर्बानी देने वाले जवानों की कोई इज्जत नहीं करते|
उनके भावनाओं की खिल्ली उड़ा देते और न ही हमारे स्वतंत्रता के लिए जान लगाने वाले
महान लोगों की इज्ज़त करते हैं | पर बच्चों ने कैप्टन की भावनाओं को समझा और नेताजी
की आँखों को सुना न होने दिया |
Thursday, 11 June 2020
उपसर्ग और प्रत्यय
उपसर्ग
जो शब्दांश किसी शब्द से पहले लगाकर नए शब्द का निर्माण करते हैं, वे शब्द उपसर्ग कहलाते हैं।
जैसे – दूर्+ गुण = दुर्गुण
निर्+ बल = निर्बल
सु+ पथ = सुपथ
निर्+ बल = निर्बल
सु+ पथ = सुपथ
उपसर्ग के प्रकार :-
1. संस्कृत के उपसर्ग
2. हिंदी के उपसर्ग
3. उर्दू – फारसी के उपसर्ग
2. हिंदी के उपसर्ग
3. उर्दू – फारसी के उपसर्ग
1. संस्कृत के उपसर्ग :-
‘ अति ‘ उपसर्ग
अति + अधिक= अत्यधिक
अति + रिक्त= अतिरिक्त
अति + अधिक= अत्यधिक
अति + रिक्त= अतिरिक्त
‘ स्व ‘ उपसर्ग
स्व + तंत्र= स्वतंत्र
स्व + राज= स्वराज
स्व + तंत्र= स्वतंत्र
स्व + राज= स्वराज
2. हिंदी के उपसर्ग:-
‘ अध ‘ उपसर्ग –
अध + खिला= अधखिला
अध + जल = अधजल
अध + खिला= अधखिला
अध + जल = अधजल
‘ उन ‘ उपसर्ग –
उन + सठ = उनसठ
उन + तीस= उनतीस
उन + सठ = उनसठ
उन + तीस= उनतीस
‘ पर ‘ उपसर्ग –
पर + लोक = परलोक
पर + उपकार = परोपकार
पर + लोक = परलोक
पर + उपकार = परोपकार
3. उर्दू – फारसी के उपसर्ग:-
‘ कम ‘ उपसर्ग –
कम + उम्र = कमउम्र
कम + अक्ल = कमअक्ल
कम + उम्र = कमउम्र
कम + अक्ल = कमअक्ल
‘ खुश ‘ उपसर्ग –
खुश + नसीब = खुशनसीब
खुश + बू = खुशबू
खुश + नसीब = खुशनसीब
खुश + बू = खुशबू
‘ बे ‘ उपसर्ग –
बे + खबर= बेखबर
बे + ईमान = बेईमान
बे + खबर= बेखबर
बे + ईमान = बेईमान
प्रत्यय
जो शब्दांश किसी शब्द के अंत में जुड़कर उसके अर्थ में
परिवर्तन ला देते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं ।
जैसे – लघु + ता = लघुता
फल + वाला = फलवाला
फल + वाला = फलवाला
प्रत्यय
के भेद:-
1. कृत् प्रत्यय
2. तद्धित प्रत्यय
2. तद्धित प्रत्यय
1. कृत् प्रत्यय:-
क्रिया
के साथ लगने वाले प्रत्यय कृत प्रत्यय कहलाते हैं । कृत् प्रत्येक के मेल से बने
शब्दों को कृदंत शब्द कहते हैं ।
जैसे – लिख + आवट = लिखावट
थक + आन = थकान
बोल + ई = बोली
थक + आन = थकान
बोल + ई = बोली
2. तद्धित प्रत्यय:-
जो प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण या अव्यय के
अंत में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, उन्हें
तद्धित प्रत्यय कहते हैं।
जैसे – सुं
दर + ता = सुंदरता
सोना + आर =सुनार
सोना + आर =सुनार
1.
संस्कृत के प्रत्यय –
‘ आलु ‘ प्रत्यय –
कृपा + आलु = कृपालु
श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु
कृपा + आलु = कृपालु
श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु
‘ इक ‘ प्रत्यय –
समाज + इक = सामाजिक
इतिहास+ इक = ऐतिहासिक
समाज + इक = सामाजिक
इतिहास+ इक = ऐतिहासिक
‘ इत ‘ प्रत्यय –
आनंद + इत = आनंदित
अंक + इत =अंकित
आनंद + इत = आनंदित
अंक + इत =अंकित
2.
हिंदी के प्रत्यय –
‘ आई ‘ प्रत्यय –
लड़ + आई = लड़ाई
भला + आई = भलाई
लड़ + आई = लड़ाई
भला + आई = भलाई
‘ आऊ ‘ प्रत्यय –
कम + आऊ = कमाऊ
खा + आऊ = खाऊ
कम + आऊ = कमाऊ
खा + आऊ = खाऊ
‘ आकू ‘ प्रत्यय –
पढ़ + आकू = पढ़ाकू
लड़ + आकू = लड़ाकू
पढ़ + आकू = पढ़ाकू
लड़ + आकू = लड़ाकू
3.
उर्दू के प्रत्यय –
‘ ईन ‘ प्रत्यय –
रंग + ईन = रंगीन
नमक + ईन = नमकीन
रंग + ईन = रंगीन
नमक + ईन = नमकीन
‘ बाज ‘ प्रत्यय –
कबूतर + बाज = कबूतरबाज
धोखा + बाज = धोखेबाज
कबूतर + बाज = कबूतरबाज
धोखा + बाज = धोखेबाज
दो प्रत्ययों का एक साथ प्रयोग
दो उपसर्गों का एक साथ प्रयोग
उपसर्ग और का एक साथ प्रयोग
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