Thursday, 3 December 2020

Class - 10 Hindi Course - A "साना साना हाथ जोड़ि" (मधु कांकरिया)

मधु कांकरिया जी ने इस पाठ मेंअपनी सिक्किम की यात्रा का वर्णन किया है। एक बार वे अपनी मित्र के साथ सिक्किम की राजधानी गंगटोक घूमने गयी थीं। रात में ढलान पर सितारिन की जगमगाती झालर ने उसे इतना सम्मोहित किया वह उसी दिन वहां से सीखी प्रार्थना -:"मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो I" अगले दिन मौसम साफ़ न होने के कारण लेखिका कन्चंजुन्घा की छोटी तो नहीं देख पायीं ,परन्तु ढेरों खिले फूलों को देखकर मन आनंदित हो गया Iउस दिन गैंगटोक से 149किलोमीटर दूर वे यूमधांग, लायुंग और कटाओ गयीं। वहां के लोग बौध धर्म को बहुत मानते थे Iरास्ते में उन्होंने बौध अनुयायियों की लगई सफ़ेद और रंगीन झंडिया देखीं I'कवी -लॉग स्टॉक 'नमक स्थान पर हिंदी फिल्म गाइड की शूटिंग स्थान देखा Iवहीँ लेपचा और भुटिया जातियों का शांति वार्ता स्त्य्हन भी देखा Iएक कुतिया में पापों को धोने का प्रेयर व्हील देखा I उंचाई पर चढ़ते चढ़ते धीरे धीरे लेखिका को स्थानीय लोगों को दिखना बंद हो गया Iनीचे घर छोटे छोटे ताश के पत्तों जैसे दिखने लगे Iरास्ते संकरे और घुमावदार होने लगे Iहरियाली के बिच कहीं कहीं खिले फूल भी थे Iहिमालय की सुन्दरता लोगों को काफी प्रभावित किया Iप्रसन्न लेखिका ने हिमालय को सलामी देनी चाही थी I सत्य और सुन्दरता की अनुभूति से वह भावुक हो उठी I अज्ञान दूर हुआ Iआत्मज्ञान होते ही एक बार फिर उसने प्रार्थना "मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो I उन्होंनेइस पाठ में सिक्किम की संस्कृति और वहां के लोगों के जीवन का विस्तार से वर्णन किया है। पाठ में हिमालय और उसकी घाटियों का भी सुंदर वर्णन किया गया है। लेखिकावहां की बदलती प्रकृति के साथ अपने को भी बदलता हुआ महसूस करती हैं। वे कभीप्रकृति प्रेमी, कभी एक विद्वान्, संत या दार्शनिक के समान हो जाती हैं। लेखिका परइस यात्रा का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने इस पाठ का नाम, एक नेपाली युवती की बोलीहुई प्रार्थना से लिया। साना साना हाथ जोड़ी का अर्थ है - छोटे छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ।

Class - 10 Hindi Course - A "जॉर्ज पंचम की नाक" (कमलेश्वर)

जॉर्ज पंचम की नाक कमलेश्वर रचित एक व्यंग्य है जो कि आज़ाद राष्ट्र के परतंत्र मानस के प्रतिनिधियों पर एक करारी चोट है.। जॉर्ज पंचम की मूर्ति की टूटी हुई नाक के बहाने अपनी स्वतंत्रता के लिए जान देने वाले अनेकों महापुरुषों और छोटे बच्चों को जिस तरह याद किया है उससे कई दिशाओं में यात्रा के प्रस्थान का बिंदु पाठक पाता है । इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ अपने पति के साथ हिंदुस्तान के दौरे पर आ रही हैं जिससे कि समस्त सरकारी अधिकारी वर्ग व्यस्त हैं । जहाँ एक ओर हिंदुस्तान में सभी दिल्ली की छवि बदलने की तैयारी में लगे हैं, इंग्लैंड में रानी के दरजी उनके लिए एक पोशाक तैयार करने में लग जाते हैं । दिल्ली में सेक्रेटरिएट पर पता चलता है कि लाट से नाक गायब है तो सब अधिकरियों में चर्चा होती है और यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि रानी के आने से पहले लाट पर नाक फिर से लगवानी चाहिए.। मूर्तिकार उनसे वह पत्थर लाने के लिए बोलता है जिससे कि मूर्ति बनी थी । पुरे भारत में जब पत्थर नहीं मिलता तो तय किया जाता है कि किसी वर्तमान मूर्ति की नाक जॉर्ज पंचम की नाक की जगह लगा दी जाए । पुरे देश की मूर्तियों की नाक नापी जाती हैं परन्तु वे सभी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । फिर बच्चों की नाकें नापी जाती हैं और वे भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकलती हैं । अंत में यह फैसला होता है कि कोई असली नाक ही लाट पर लगा दी जाए । चालीस करोड़ में से किसी एक की नाक तो लग ही जायेगी । आखिर जॉर्ज पंचम की लाट को बिना नाक के कैसे छोड़ा जा सकता था । अख़बारों में खबर आयी कि जॉर्ज पंचम कि नाक का मामला हल हो गया है । लाट पर नाक लग गयी है, परन्तु उस दिन के अखबार में कहीं किसी उद्घाटन की, किसी भेंट की, हवाई अड्डे पर किसी स्वागत सभा की, कोई खबर नहीं थी , अखबार खाली थे । नाक तो सिर्फ एक थी वह भी बूत के लिए, फिर पता नहीं क्या हुआ.।

Class - 10 Hindi Course - A "माता का आंचल" (शिवपूजन सहाय)

बच्चे का माँ से ममता का रिश्ता होता है। पिता के साथ स्नेहाधारित रिश्ता होता है। दोनों प्रेम के रूप हैं पर ममता में कठोरता का कोई स्थान नहीं होता। पिता के स्नेह में किंचित कठोरता शामिल हो सकती है। इसलिए बच्चा अपने पिता का स्नेह प्राप्त करके आनंदित हो सकता है पर उसमें माँ के प्रेम के बराबर सुख नहीं मिलता है। भोलानाथ को अपने पिता से लगाव था पर विपदा के समय वह अपनी माँ के पास जाता है। क्योंकि पिता से डांट खाने की संभावना थी पर माँ की गोद में हर स्थिति में प्रेम, ममता और दुलार मिलना निश्चित था। वह एक बच्चा था और उसे खेल कूद अच्छा लगता था। उनके साथ वह खेल में मगन हो जाता था। एक बार जब वह गुरूजी से डांट खाने के बाद अपने पिता के साथ रोता हुआ जा रहा था, उसने अपने मित्रों को एक चिड़िया के झुण्ड के साथ खेलते हुए देखा। वह अपना दुःख भूल गया और उनके साथ खेलने लगा। भोलानाथ और उसके साथी आस पास उपलब्ध चीजों से खेलते थे। वे मिट्टी के टूटे फूटे बर्तन, धूल, कंकड़ पत्थर, गीली मिट्टी और पत्तियों से खेलते थे। वे समधी को बकरे पर सवार करके बारात निकालने का खेल खेलते थे। कभी कभी लोगों को चिढ़ाते थे। एक दिन जब पिताजी रामायण पढ़ रहे थे भोलानाथ अपने को आईने में देखकर खुश हो रहा था। लेकिन जब पिताजी ने उसकी ओर देखा तो उसने शर्मा कर आईना रख दिया। पाठ के अंत में दिखाया गया है कि भोलानाथ सांप से डरकर माता की गोद में आता है, माँ अपने बेटे की हालत देखकर दुखी होती है और उसे अपने आंचल में छिपा लेती है। इस प्रकार जबकि उसका अधिक समय पिता के साथ व्यतीत होता है विपदा के समय उसे माँ की गोद में ही शांति मिलती है।

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